...और पूरा कर गए आखिरी वादा भी, साथ जीने का साथ मरने का


नई दिल्ली : 

भारत माता की जय, इंकलाब जिंदाबाद, जनरल सीडीएस रावत अमर रहें, मधुलिका रावत अमर रहें...चारों तरफ आसमान में एक गूंज हैं। दुख तो है मगर चेहरे में उदासी नहीं। अगल-बगल ताबूत में सीडीएस बिपिन रावत हैं और उनके बगल में उनकी पत्नी मधुलिका रावत हैं। दोनों ने एक साथ ही इस देश के लिए अपनी कुर्बानियां दे दीं। पूरे देश का माहौल गमगीन है। हर आंख नम है। 14 लोगों में से 13 लोगों की मौत हो गई है। इनमें से सिर्फ चार लोगों के शवों की पहचान हो गई। उनमे से दो सीडीएस रावत और उनकी पत्नी मधुलिका ही हैं। मधुलिका और बिपिन ने आखिरी वक्त पर एक दूसरे को अकेले नहीं छोड़ा।

कभी-कभी ख्याल आता है कि एक फौजी की पत्नी हमेशा अपने फौजी पति से तोहफे में उनसे सलामती मांगती है। वो हर तीज त्योहार अपने पति की लंबी आयु मांगती है। जब भी उसकी पति से बात होती है तो बस एक ही वादा करने को कहती है...मुझको अकेले छोड़कर मत जाना। तुमको अगर कुछ भी हो भगवान उससे पहले मुझे उठा ले। मगर देखो तो मधुलिका और बिपिन का मुकद्दर। कभी साथ न छोड़ने वाला वादा। दोनों आज भी साथ है। आखिरी वक्त भी साथ थे। दोनों अपना वादा निभा गए। देश का कर्ज भी और पत्नी का वादा भी निभाकर रावत हमको रोता छोड़कर चले गए।

सोचकर रूह कांप जाती है वो आखिरी 60 सेकंडों में किया होगा। दोनों के बीच क्या बात हुई होगी। क्या उनको भी महसूस हुआ होगा कि ये जिंदगी के आखिरी सफर में हम लोग निकल पड़े। मुझे लगता है कि दोनों डरे तो बिल्कुल नहीं होंगे। क्योंकि डर शब्द उन दोनों के शब्दकोश में ही नहीं था। डर होता क्या है इससे अनिभिज्ञ थे। शायद ये विमान जब डगमगाया तो दोनों ने एक दूसरे के हाथों को थामा होगा। दोनों ने आखिरी बार एक दूसरे को देखा होगा और कहा होगा अब हम दूसरी दुनिया में एक दूसरे को मिलेंगे। वहां पर मौजूद लोगों ने बताया कि सीडीएस रावत क्रैश के वक्त जिंदा थे और हिंदी में अपना नाम बता रहे थे। वो पानी मांग रहे थे।

जब शब्द खत्म हो जाएं, जब भावनाओं का ज्वार मन में फूटे मगर आवाज न निकले, जब कुछ लिखने में उंगलियां थरथर्राए, जब कुछ बोलते वक्त लबों पर खामोशी छा जाए, जब आंखों से आंसुओं का झरना बह जाए, जब निगाहें कहीं और टिकने को राजी न हों, जब ये पडाड़ अपनी कठोरता भूल जाएं, जब ये कांटे चुभना भूल जाएं....और कितना लिखूं कुछ बचता नहीं है। कुछ हकीकत ऐसी होती हैं जिनको जानकर भी मन को बहलाया नहीं जा सकता है। देश ने एक वीर योद्धा खो दिया। इस योद्धा के साथ उसकी वीरांगना भी तिरंगे के कफन में लिपट गईं।

दिल चीरती इस तस्वीर को देखिए। दोनों के ताबूत अगल-बगल। साथ जीने और साथ मरने की कसम आज दोनों ने पूरी कर दी। पूरा देश रो रहा है। यकीन नहीं हो रहा कि आज वो तेजतर्रार चेहरा, कड़क मिजाज शख्स हमारे बीच नहीं रहा। तिरंगे में लिपटा उनका शरीर ताबूत में बंद है और आस-पास शौर्यता, वीरता के नारे लग रहे हैं। सच तो है, इस वीर ने अपने जिंदगी के 40 साल देश को दे दिए। एक बात सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या कमी रह गई होगी सीडीएस रावत के पास जो उन्होंने सीडीएस के लिए भी हामी भर दी होगी। सोचिए, एक इंसान की सोच से परे उन्होंने उम्र के उस पड़ाव में आकर जहां पर लोग रिटायरमेंट के बाद अपनों के साथ सुकून की जिंदगी बिताना चाहते हैं उस वक्त भी उनका जज्बा देश के लिए था। उन्होंने जिंदगी की आखिरी सांस भी देश के लिए न्योछावर करने की कसम खाई थी। उस कसम की खातिर उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

सीडीएस बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका ने एक साथ इस दुनिया को अलविदा कह दिया। एक वीर तो दूसरी वीरांगना। सैनिकों की पत्नी होना आसान नहीं होता। वो सरहद पर जंग लड़ते हैं तो उनकी पत्नियां परिस्थितियों से जंग लड़ती हैं। सालों इंतजार करती हैं उनसे मिलने का। उनकी तस्वीरों को सीने से लगाकर बस यादों में बसाकर अपनी जिंदगी का आधा सफर यूं ही बिता देती हैं। मधुलिका रावत का सफर भी ऐसा ही रहा। जब उनकी शादी बिपिन रावत से हुई उस वक्त बिपिन सेना में कैप्टन थे। कई साल उन्होंने अकेले ही बिता दिया। बस कभी कभार बात करके और एक दूसरे का हाल चाल लेकर।

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